Friday, April 30, 2010

जी के जंजाल ये पार्क…

हरे-भरे पार्क किसे नहीं भाते ? नगर निगम ने कई मोहल्लों को एक-एक पार्क तो मुहैया करा दिए हैं पर इन पार्कों के कारण मोहल्लों में जो शीत-युद्ध चलने लगा है , उससे निगम को कोई मतलब नहीं होता । पार्क को हरा-भरा बनाने के लिए कोई भी व्यक्ति आगे आता है , सबसे एक निश्चित रकम हर महीने लेता है…कोई देता है तो कोई नहीं देता । हर महीने पार्क की भलाई के लिए मीटिंग की जाती है …लोग इकट्ठे होते हैं…बात हँसी-मज़ाक और हरे-भरे पेड से शुरू होकर सिर-फुटौव्वल की नौबत तक आकर रुक जाती है । मीटिंग के बाद एक-दूसरे को दोष देते हुए अपशब्द कहना , व्यंग्य कसना , आदि आम बात सी हो जाती है…। बहरहाल पार्क तो हरा-भरा हो जाता है पर आपसी व्यवहार पर पतझड की जो गाज़ गिरती है , उसका क्या हल है ? इधर सुना है कि सिर फुटौव्वल से बचाने के लिए ही नगर निगम ने कुछ पार्कों को गोद ले लिया है । समय पर उनका माली आता है , पेड लगाता है , किसी घर से पानी लेकर सींचता है और फिर चला जाता है …पर बावजूद इसके पार्क को गोद में उठा कर कुछ लोगों ने इसे जी का जंजाल बना दिया है…।

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